Friday, June 15, 2012

मिले हो तुम





मिले हो तुम माँगना क्या रब से।
ये हाथ उठेंगे न कभी
दआु के लिए,

जिसे देखा नहीं कभी
न महसूस ही किया है

जीना भी क्या उस
खुदा के लिए

स्वप्न सलोना हो तुम
मिल जाओ आकर मुझसे
सदा के लिए,

इक प्यास हाँ
इक प्यास ही है,

जो बसती दो साँसो बीच कभी
कभी बसती दो नयन बीच
नीर बन तुम्हारी इक अदा के लिए

***

अनारकली




बदरंग दीवारो की तरह
चकते उभर आए हैं
मेरा दिल जैसे
इक सूना कमरा
बंद दीवारों के बीच
घुट रही हूँ
बाहर
कौन?
क्या ?
कहाँ?
मैं तो चुन दी गई हूँ
अनारकली की तरह।

***

Friday, June 1, 2012

मीरा की पीर






आसमान पर घिरी घटाएँ
जिस तरह,
मन पर .. तुम्हारी यादें
वैसे ही
वो बरसें न बरसें
पर ये सिर्फ बरसना
ही जानती हैं

कब, कहाँ मेरा कहा मानती हैं,
जीवन भर की पीड़ा सिमट आई है,
दो नयनों के बीच
जाने कि तना जल है
अवि रल धार,
विपुल धार,
लिए –

अस्तित्वहीन,
दरस बिन
वजूद खोते हैं,



चुपचाप आते हैं,
जाते हैं,
क्या ये पलायन है
यथार्थ से?
ऎसा तो नहीं लगता
इस ‘मीरा के कृष्ण’
तुम कहाँ हो?

पाषाण था वो भी
और तुम भी,
एक चोट, एक दर्द,
जो दिया तुमने
कब तक संभालती रहूँ
तुम मूक रहो
स्थिर रहो

जग करे तुम्हारी
आराधना,
मैं अस्थिर रहूँ
बिह्वल रहूँ
मेरी होती रहे
भर्त्स ना क्यों?

फिर भी कहीं
अर्न्तमन में
कोई तुष्टि है,
इस पीड़ा में ही
कहीं कोई संतुष्टि तो है

दो और दो स्वीकार्य
मुझे है,

पीड़ा में, आँसुओं में
तुम्हे ही पाती हूँ
सारे साधन बन जाते हैं
सारे दर्पण बन जाते हैं,
लताओं से, वृक्षों से
सीता का पता पूछने वाले
राम की भांति
सबमें तुम्हे ही पाती हूँ –
‘हे मेरे कृष्ण’ तुम पाषाण ही रहो।

***

प्रेम



बेशकीमती हैं पल तुम्हा रे
यँू ख्वाबों में आया न करो

माना हृदय में
उमड़ता प्यार बहुत है,
कहूँ क्या बेबस याद बहुत है
न कहीं उभड़ पाया तो क्या ?
आँसुओं संग ढुलक जाएगा
माटी संग मिल हर रुत में,

नए-नए रुप धरेगा
आएगी जो वर्षा तो
महक उठेगी धरती
सोंधी महक से,
मेरा प्यार ही तो होगा
रुत बदलेगी
रूप रंग बदल जाते हैं जैसे,

वैसे ही मेरा प्यार,
धरती की उमस में,
कसमसाता सा
नवरूप धरेगा।

 
आएगी जो शिशिर
रंगबिरंगे फूलों में
छवि उसकी ही होगी

बदलती भावों की तरह
वह फिर बदलेगा
उष्मा कैसे वह इतनी सहेगा?
ताप हरने को
बिखरने से पहली ही
फिर से, वह रंग बदलेगा

हाँ, तुम देख लेना,
मेरा प्यार वहीं कहीं
तुम्हारे ही आस-पास
सफेद लिली के रूप में
हँस रहा होगा कि
तुम छूलो एक बार उसे।

***

 

Sunday, May 27, 2012

सागर के सपने

 



सागर ने देखा एक सपना,
विशाल जि गर वाले सागर ने,
दिन-रात जागती अपनी आँखों से,

देखा एक सपना..

स्वप्न सलोना था
मासूम बच्चे के हाथों में,
जैसे कोई प्यारा सा खिलौना था,
वैसे ही भावुक हो सागर ने देखा
कि उसकी छाती पर निरंतर

लहरें है उठती गिरती
ज्वार और भाटे में
जिन्दगि याँ है बनती-बिगड़ती
उनके लिए हाँ उनके लिए ही सागर ने देखा एक सपना

अमन हो चमन में उसकी
कोई चीत्कार न उठे,
सागर के संसार में,
कोई सिसकार न उठे

सूरज उगे कि नवजीवन लाए
चाँद निकले तो सौंदर्य का सुधा पान कराये
ऐसे ही हो खुशि यों संग आंख-मिचोली
जिंदगी से जिंदगी की हो मुलाक़ात हौली हौली

***

Monday, May 21, 2012

दूरी



 

आमने सामने खड़े, युगों से
पाषाण हो तुम
मैं बर्फ की बनी
सर्पीली नदी सी पिघलने सा लगे है कुछ,'

अनचाहे ही चले आए
किसने न्यौता था?

और आते ही स्वनिर्मित
पाषाणी वजूद में समा गए हो
मैं सिर पटक पटक कर
रूप बदल बदल कर,
थक कर, हार कर
पाना भी चाहूँ तो
कैसे संभव है?
नहीं ना?
युगों की दूरी,
तय कर सका है,
कोई आज तक?

***

Friday, May 18, 2012

बाबूजी

 




स्मृतियों का घना जंगल
भ्रमित सदैव हर पल,

ठोकर खाया तुमने सहलाया
आँसुओं को हथेलियों पे रोका

हे पिता! बाहे तेरी मेरा सिराहना
तेरी गोद में पला बचपन
छाया में तेरी आया यौवन,
हाय! मैं क्यूँ हुई पराई?

सुख-दःुख सारे बटं गए
पिता तुम हम भी
अपनी-अपनी देहरी से
बंध गए

मन मेरा रहा सदा तुम्हारी देहरी
तले
सुख! जीवन में तब था
तुम थे तब जग था
सूना मन खुली हथेली से
फिसला जाता है


घुप अंधेरी कूप सी जिन्दगी
प्रतिध्वनित आवाजें डराती हैं
अब आते नहीं क्यूँ?
पुचकारते नहीं क्यूँ?
आँखें भी रोते-रोते थक जाती हैं

***

माँ





कभी जिसने देखा ही नहीं,

धूप को –
हवा को –
पेड़ को –
छांया को –

उसे क्या पता?
उसकी धुअन कैसी?
छाँव कैसी?

ओ माँ, माँ कैसी होतीं है...
इन सबका मिश्रण होती है

***

कुछ और सितम



कर कुछ और सितम ज्यादा,
कि होश बाकि है अभी,

हसरते तमाम लुट चुकी
कि उम्मीद बाकि है अभी,

न जा कि रूक जा थोड़ी देर और
बाते बाकि हैं अभी

चंद मुलाकातें और सही
कि दीदारे यार बाकि है अभी

जब भी मुखाति ब तू हमसे
(होता) है ?
वो पल फिर क्यों गुजरता है ?

कोई रोक दे उस पल को
कुछ अरमा बाकि हैं अभी।

***



हर सुबह लिए






हर सुबह लिए आती है
आँसुओं की सौगात।

और याद लिए आती है,
यादों की बारात।

मेरे दर पर बड़ी रौनक
रहती है यारों
जबसे प्यार हुआ है
कैसे बताऐं यार ने हमें क्या-क्या
दिया है ?

जख्मों से भरा जिगर
और कभी न भरने वाला जख्म
दिया है
मेरे दिलदार ने ..
मेरे प्यार ने ..

***

दर्द जिगर का





हमसे भुलाया न गया
 दाग दर्दे जिगर का
किसी हाल में मिटाया न गया

रंजो गम इतने कि
सुनाऐं कैसे?
गम के फसाने सुनाए नहीं जाते

अपनों के दिए घाव
दिखाए नहीं जाते
रहने भी दो, छोड़ो भी यार
बेबसी कैसी, क्यूँ हो मायूसी
कि इस शहर में

कुछ ऐसे भी हैं मुर्दे,
जो दफनाए नहीं जाते –
कोई बेजार रहे तो क्या
माजरा नया है
मुर्दे सीने से लगाए नहीं जाते

***