दाग दर्दे जिगर का
किसी हाल में मिटाया न गया
रंजो गम इतने कि
सुनाऐं कैसे?
गम के फसाने सुनाए नहीं जाते
गम के फसाने सुनाए नहीं जाते
अपनों के दिए घाव
दिखाए नहीं जाते
रहने भी दो, छोड़ो भी यार
बेबसी कैसी, क्यूँ हो मायूसी
कि इस शहर में
कुछ ऐसे भी हैं मुर्दे,
जो दफनाए नहीं जाते –
कोई बेजार रहे तो क्या
माजरा नया है
मुर्दे सीने से लगाए नहीं जाते
***
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