Friday, May 18, 2012

माँ





कभी जिसने देखा ही नहीं,

धूप को –
हवा को –
पेड़ को –
छांया को –

उसे क्या पता?
उसकी धुअन कैसी?
छाँव कैसी?

ओ माँ, माँ कैसी होतीं है...
इन सबका मिश्रण होती है

***

1 comment:

  1. Bohot bohot khoobsoorti se,itne kam shabdon mein itni gehri baat keh di :)
    Wonderful prose!

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