मैं चिराग हूँ,
जलना मेरी नियति है,
मेरे जलने से कई घर रोशन होते हैं,
होती हैं रोशन कई जिंदगियां,
जलते बुझते कई युग गुजरे,
बीते कई दिन रैन,
जला कर खाक करने की भी ,
ताकत मैँ हूँ रखती ,
ताकत मैँ हूँ रखती ,
जलना औऱ जलाना ही सच्चाई है जमाने की,
जिसे तुम क्रोध कहते हो वह भी तो अग्नि ही है ,
जिसे तुम क्रोध कहते हो वह भी तो अग्नि ही है ,
तुम्हें एक बात बताती हूँ ...पते की बात बताती हूँ -
प्रेम का मूलमंत्र अपनाओ ||
प्यार ,बस प्यार ही बचा सकता है मानवता को ,
आओ तुम हम मिल सार्थक करें ...
जीने वाले हर जीवन को ,
रौशनी से भर दें ||
रौशनी से भर दें ||
Bohot khoobsurat kavita hai!
ReplyDeletedhanywad
DeleteBeautiful words and poetry..
ReplyDeleteDhanyawaad
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