भावनाओं का मानव जीवन में स्थान समझने के लिए एक बड़ा ही सरल उदाहरण है जैसे मिट्टी व
पानी के मेल से हम इसे समझें जिस तरह सूखी धरती कठोर होती है वैसे ही भावशून्य मानव हृदय
कठोर होता है जैसे उसमें पानी डाल कर उस कठोरता नरमाई में परिवर्तित किया जा सकता है
जल के संयोग से मृतिका कठोर नहीं रह जाती ,मृदु हो जाती है ;उसी प्रकार भावनाएँ जीवन में
नरमाई लाकर हमें संवेदनशील बनाती हैं परन्तु उससे भी आगे देखें तो अत्यधिक जल धरती की
मिट्टी को पंक मैं बदल कर उसे कीचड़ अथवा दलदल की संज्ञा दे देता है वैसे ही भावनाओं की
अतिरेकता हमें गर्त में अवसाद में खींच ले जाती हैं आत्महत्याएँ भी इसी काउदाहरण हैं.
Very beautiful words!
ReplyDelete