Friday, June 1, 2012

प्रेम



बेशकीमती हैं पल तुम्हा रे
यँू ख्वाबों में आया न करो

माना हृदय में
उमड़ता प्यार बहुत है,
कहूँ क्या बेबस याद बहुत है
न कहीं उभड़ पाया तो क्या ?
आँसुओं संग ढुलक जाएगा
माटी संग मिल हर रुत में,

नए-नए रुप धरेगा
आएगी जो वर्षा तो
महक उठेगी धरती
सोंधी महक से,
मेरा प्यार ही तो होगा
रुत बदलेगी
रूप रंग बदल जाते हैं जैसे,

वैसे ही मेरा प्यार,
धरती की उमस में,
कसमसाता सा
नवरूप धरेगा।

 
आएगी जो शिशिर
रंगबिरंगे फूलों में
छवि उसकी ही होगी

बदलती भावों की तरह
वह फिर बदलेगा
उष्मा कैसे वह इतनी सहेगा?
ताप हरने को
बिखरने से पहली ही
फिर से, वह रंग बदलेगा

हाँ, तुम देख लेना,
मेरा प्यार वहीं कहीं
तुम्हारे ही आस-पास
सफेद लिली के रूप में
हँस रहा होगा कि
तुम छूलो एक बार उसे।

***

 

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