पीतवर्णी पुष्प बिछे हैं
कदमबोशी के लिये ,
हौले से संभल कर रखना पाँव ,
भूल तुम ये करना नहीं
,कभी उन्हें कुचलना नहीं ,
कैसा अदभुत अंदाज है,कैसा मोहक प्यार है ,
प्रिय ;तुम्हारे पाँव चूमने को,
,वे जीवन खोते हैं;
एक कोमलता का जाकर ,
दूसरे में विलय हो ,
फूल शायद इसलिए बिछ जाते हैं ,
तुम क्या जानो
तुम क्या समझो .
ये मासूम खूबसूरती,
आख़िर कुर्बान क्यों ........
ज्ञात नहीं क्या तुम्हें ?
अधरों से तुम्हारे इन्होंने
चुराई कोमलता
तुम्हारी वही सौगात ,
लौटाने ये आये हैं ,
स्वीकारो प्रिय;
न अनादर करो ,
आखिरी साँसे लेते ,
मुरझाते हुए, ये दें दम तोड़ ,
इससे पहले ,आओ प्रिय।
अभिसार करो
श्रृंगार करके प्रकृति आई है ,
आओ प्यार करो।
कदमबोशी के लिये ,
हौले से संभल कर रखना पाँव ,
भूल तुम ये करना नहीं
,कभी उन्हें कुचलना नहीं ,
कैसा अदभुत अंदाज है,कैसा मोहक प्यार है ,
प्रिय ;तुम्हारे पाँव चूमने को,
,वे जीवन खोते हैं;
एक कोमलता का जाकर ,
दूसरे में विलय हो ,
फूल शायद इसलिए बिछ जाते हैं ,
तुम क्या जानो
तुम क्या समझो .
ये मासूम खूबसूरती,
आख़िर कुर्बान क्यों ........
ज्ञात नहीं क्या तुम्हें ?
अधरों से तुम्हारे इन्होंने
चुराई कोमलता
तुम्हारी वही सौगात ,
लौटाने ये आये हैं ,
स्वीकारो प्रिय;
न अनादर करो ,
आखिरी साँसे लेते ,
मुरझाते हुए, ये दें दम तोड़ ,
इससे पहले ,आओ प्रिय।
अभिसार करो
श्रृंगार करके प्रकृति आई है ,
आओ प्यार करो।
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