Tuesday, September 12, 2017

क्या यहीं जि न्दंगी है?

क्या यहीं जि न्दंगी है?

क्या खोते रहते का दूसरा नाम
जि ंदगी है?
एक आँख में हँसी
तो दूसरी में नमी
का नाम जि ंदगी है?
आईए और दाँव लगाते जाईए
शायद इसी जुए का नाम जि ंदगी है!
कहीं ठहरे हुए जल में
कमल दल में
ओस की बूँद को तो
जि ंदगी कहते नहीं?
गमों की घूंट पीते जाईए
नश्तर चूभें भी तो
पीर बीच खुद को डूबोते जाईए,
मुस्कुराईए, मुस्कुराईए
क्योंकि दर्द के बीच मुस्कुराना ही तो
जि ंदगी है।

आदरणीय अटल बि हारी बाजपेयी जी के नाम

आदरणीय अटल बि हारी बाजपेयी जी के नाम

अंद्धरूनी सत्य लि ए हृदय बीच
टलता रहा समय
लम्हों में सरकती रही जि न्दगानी
बि ना कि सी बि गुल के
हारती हुई नारायणी सेना
रीझ उठी, झूम उठी
बासन्ती हवा मदमस्त हुई
जलती रही थी धरा सदि यों से
पेड़ों ने भी अपनाई खामोशी
इन्हें तुमने सहलाया है... ।